SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्त्व अधिकार स किसी जीवका संसार-संसरणका काल अधिक-सेअधिक अर्ध पुद्गल परावर्तन और कम-से-कम अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है, वह निश्चय -सम्यग्दर्शन प्रहण करके चतुर्गति रूप संसारको पार करनेवाले मोक्ष सुखकी बानगी लेता है । अन्तर्मुहूर्तसे लगाकर अर्ध पुद्गल परावर्तन कालके जितने समय हैं, उतने ही सम्यक्त्वके भेद हैं । जिस समय जीवको सम्यक्त्व प्रकट होता है, तभी से आत्म-गुण प्रकट होने लगते हैं और सांसारिक दोष नष्ट हो जाते हैं। सम्यक्त्वके आठ विवरण हैं: - १ - स्वरूप, २ – उत्पत्ति, ३ – चिन्ह, ४ - गुण, ५-- भूषण, ६- दोष, ७-- नाश और ८ - श्रतिचार | सम्यक्त्वका स्वरूप आत्म-स्वरूपकी सत्य प्रतीति होना, दिन-प्रतिदिन समता भाव में उन्नति होना और क्षण-क्षण में परिणामोंकी विशुद्धि होना, इसीका नाम 'सम्यग्दर्शन' है । सम्यक्त्वकी उत्पत्ति चतुर्गतिमें सभी जीवोंको सम्यग्दर्शन प्रकट होता है। वह किसी-किसी जीवको अपने-आप प्रगट होता है । अपने-आप
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy