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खण्ड
* गुणस्थानका अधिकार *
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जाते हैं। इन गुणस्थानोंवाले मुनि कम-से-कम एक भवमें और ज्यादा-से-ज्यादा तीन भवमें मोक्ष प्राप्त करते हैं।
११--ग्यारहवाँ गुणस्थान-इस गुणस्थानमें मोह-प्रकृति उबल पड़ती है। जिसका परिणाम यह होता है कि मुनि एक नीची अवस्थाको प्राप्त करते हैं । और अगर नीची अवस्था प्राप्त कर लेनेके पेश्तर इस गुणस्थानमें मृत्यु हो जाती है तो अनुत्तरविमान में पैदा होते हैं।
१२-बारहवाँ गुणस्थान-इस गणस्थानमें मुनि माह-प्रकृतियोंको सर्वथा निर्मूल कर डालते हैं। इस अवस्थामें मुनि क्षायिक भाव, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक यथाख्यात चारित्र प्राप्त करते हैं। इनके अलावा भाव सत्य, कारण सत्य, अकषायी, वीतरागी, भाव निर्ग्रन्थ श्रादि गुणोंको प्राप्त करते हैं और महा ध्यानी, महाज्ञानी होकर अन्तमुहूर्त इस गुणस्थानमें रहकर तेरहवें गणस्थानको प्राप्त करते हैं। इस गणस्थानके आखिरी समयमें ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्मोका क्षय करके तेरहवें गुणस्थानको प्राप्त करते हैं । इस गुणस्थानमें मृत्यु नहीं होती है। __१३-तेरहवाँ गुणस्थान-इस गुणस्थानमें मुनिको केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि गुणोंकी प्राप्ति होती है । इस अवस्थामें मुनि कम-से-कम एक अन्तमुहूर्त और ज्यादा-से-ज्यादा कुछ कम