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________________ AAAAAADMAARAAD M AA VAdmaavatman. ३६० * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय एक क्रोड पूर्व तक रह सकता है। इस गुणस्थानमें मुनिका निर्वाण नहीं होता है। १४-चौदहवाँ गणस्थान-इस गणस्थानमें अयोगी केवली अपने सारे कर्मोको क्षय करके मन, वचन और कायकी क्रियाको एक दम बन्द करके मोक्ष पदको प्राप्त करते हैं । गणस्थानोंके सम्बन्धमें विशेष जानकारीकेलिये कुछ मुख्यमुख्य बातें और समझ लैनी उपयोगी होंगी: ध्यान चार होते हैं. जिन्हें कि पहले ध्यान अधिकारमें हम कह आये हैं: १-बात ध्यान, २-रौद्र ध्यान, ३-धर्म ध्यान और ४शुक्ल ध्यान । निम्नलिखित ध्यान निम्नलिखित गुणस्थानोंमें पाये जाते हैं: १-पहिले तीन गुणस्थानोंमें आत्त और रौद्र, ये दो ही ध्यान तर-तम भावसे पाये जाते हैं। २-चौथे और पाँचवें गणस्थानमें उक्त दोनों ध्यानोंके अतिरिक्त सम्यक्त्वके प्रभावसे धर्मध्यान भी होता है। ३-छठे गणस्थानमें आर्त और धर्म, ये दा ध्यान होते हैं। ४-सातवें गुणस्थानमें सिर्फ धर्मध्यान ही होता है। ५-आठवेंसे बारहवें गुणस्थान तक अर्थात् पाँच गुणस्थानोंमें धर्म और शुक्ल, ये दो ही ध्यान होते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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