________________
खण्ड ___ * गुणस्थानका अधिकार * ३५७ कर लेता है, वह अपने अनन्त संसारका अन्त कर सिर्फ अर्धपुद्गलपरावर्तन संसार भोगना बाकी रखता है। __३-तीसरा गुणस्थान-जब जीव न केवल सम्यकदृष्टि है
और न केवल मिथ्यादृष्टि है अर्थात् संदेहशील है, ऐसी अवस्था में वह इस गुणस्थानमें होता है। इसकी स्थिति कुछ दूसरे गुणस्थानसे अच्छी होती है। इस गुणस्थानवाला जीव कुछ कम अर्ध पुद्गलपरावर्तन संसार भोगना बानी रखता है।
४-चौथा गुणस्थान-इस गणस्थानमें जीव सम्यकदृष्टि तो होता है पर अव्रती होता है अर्थात् सुदेव, सुगुरु और सुधर्मपर श्रद्धा व प्रतीति रखता है, वीतराग धर्म सच्चा मानता है और चार तीर्थकी भक्ति करता है, पर व्रत-त्याग वगैरः नहीं करता है। अगर इस गुणस्थानमें श्रानेसे पश्तर आयुका बन्ध न पड़ा हो तो नरक, तिर्यंच, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, स्त्री और नपुंसक नहीं होता अर्थात् अच्छी योनिको प्राप्त करता है। ___५-पाँचवाँ गुणस्थान-इस गुणस्थानमें जीव सम्यक् दृष्टि होता है और त्याग, प्रत्याख्यान व तपस्या वगैरः भी करता है। यह गुणस्थान श्रावकका है। इस अवस्थावाला जीव जघन्य तीन और उत्कृष्ट पन्द्रह भव करके अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है।
६-छठा गुणस्थान--यह गुणस्थान उन साधुओं व मुनियों को प्राप्त होता है जिन्होंकी कषाय, चपलता व प्रमाद मन्द नहीं