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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
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योग
शुभ
अशुभ
अशुभ
शुभ
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मन सत्य मनो योग असत्य मनोयोग मिश्र मनोयोग व्यवहार मनो
योग वचन सत्य वचन योग असत्य वचनयोग मिश्र वचन योग व्यवहार
वचन योग काय औदारिक काय वैक्रियिक काय पाहारिक काय कार्मण काय
___ योग योग योग योग औदारिक काय वैक्रियिक काय पाहारिक मिश्र
मिश्र योग मिश्र योग . योग । इस कारण भव्य प्राणियोंको अशुभ योगोंको त्यागना चाहिये और शुभ योर्गोको ग्रहण करना चाहिये ।
दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि जो अपने मनुष्य जन्मको सफल बनाना चाहते हैं अर्थात् कर्म बन्धनोंसे छूटना चाहते हैं, उनको शुरूकी तीन लेश्याएँ यानी कृष्ण, नील और कापोन अथवा हिंसा, निर्दयता, दुष्परिणामता, ईर्ष्या, माया, कपट, लम्पटता, धोखा, झूठ, चोरी, मिथ्यात्व, नास्तिकता आदि अशुभ बातोंको छोड़ना चाहिये। और तेजो, पद्म और शुक्ल अथवा नम्रता, सरलता, सत्यता, अकपायपना, शान्ति, रागद्वेष रहितता, संयम, सम्यक्त्व, आदि शुभ गुणों सहित होना चाहिये।