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खण्ड]
* लेश्या अधिकार *
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यह नियम है कि जीव जिस लेश्यामें मरता है अर्थात् मृत्यु वाप्त करता है, जन्म लेते समय भी उसके वही लेश्या होती है ।
अपर्याप्त और पर्याप्तका अर्थः--
१--जो जीव अपर्याप्त नाम कर्मके उदयसे पूर्ण इन्द्रियाँ प्राप्त करनेसे पूर्व अर्थात् पेश्तर ही मृत्युको प्राप्त होता है, उसे 'अपयाप्त जीव कहते हैं।
२-जो जीव पर्याप नाम कर्मके उदयसे पूर्ण इन्द्रियाँ प्राप्त करनेके बाद मृत्युको प्राप्त होता है, उसे 'पयांम' जीव कहते हैं।
योगोंका लेश्याओंके साथ सम्बन्ध जिस प्रकार एक पके तालाबमें मोरियों द्वारा पानी आया करता है, उसी प्रकार श्रात्मारूपी तालाबमें योगरूपी नालियों द्वारा लश्यारूप निर्मल और गदला जल पाया करता है। ये योगरूपी नालियाँ पन्द्रह प्रकारकी होती हैं। __ चार मनकी, चार वचनकी और 'सात कायकी। इनमेंसे कुछ वे द्वार हैं, जिनके जरियेसे स्वच्छ जल अथवा शुभ लेश्या;
और कुछ के द्वार हैं, जिनके जरियेसे गदला जल अथवा अशुभ लश्यारूपी जल आया करता है, वे निम्न प्रकार हैं:
* मृत्यु के प्रायः अन्तर्मुहूर्त पहिले नूतन जन्मसम्बन्धी लेश्या प्राप्त हो जाती है।