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[तृतीय
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास * पर्याप्त १३-सन्नी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और १४--सन्नी पञ्चे- । न्द्रिय पर्याप्त । ___ कौन-कौनसे जीवस्थानमें कौन-कौनसी लेश्या पाई जाती है उनका अब वर्णन किया जाता है:
१--संझिद्विकमें अर्थात अपर्याप और पर्याप्र संज्ञि-पञ्चेन्द्रिय में छहों लेश्याएं होती हैं।
२-अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियमें कृष्ण श्रादि पहिली चार लेश्याएं होती हैं।
३-शेष ग्यारह जीवस्थानोंमें यानी अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय, पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, अपर्याप्त तथा पर्याप्त द्वीन्द्रिय, अपर्याप्र और पर्याप्र त्रीन्द्रिय अपर्याप्त तथा पर्याप्त चतुरिन्द्रिय और अपान तथा पर्यात अमंज्ञि पञ्चन्द्रियोंमें कृष्रम, नील और कापोत लेश्याएँ होती है।
कृष्ण आदि तीन लेश्यायें मब एकेन्द्रयों के लिये साधा. रण हैं। किन्तु अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियमें इतनी विशेषता है कि उसमें तेजों लेश्या भी पाई जाती है। क्योंकि तेजो लेश्यावाले ज्योतिषी आदि देव जब उसी लश्यामं मरते हैं और बाहर पृथ्वीकाय, जलकाय या वनम्पतिकायमें जन्म लेते हैं. तब उन्हें अपर्याप्र अवस्थामें भी तेजो लेश्या होती है।