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रखड
* लेश्या अधिकार *
३३७.
कषाय बहुत अंशोंमें मन्द हो जाते हैं; चित्त प्रशान्त हो जाता है। आत्मसंयम किया जा सकता है; मित-भाषिता और जितेन्द्रियता आ जाती है. यह परिणाम "पद्म लश्या' का है । इस लेश्यामें मरनेवाला जीव पाँचवें स्वर्ग तक पहुँच सकता है और दस सागरकी आयुः स्थिति तक पाता है।
६-'शुक्ल लेश्या उस परिणामको समझना चाहिये, कि जिससे आत-रौद्र-ध्यान बन्द होकर धर्म-शुक्ल ध्यान होने लगता है। मन, वचन और शरीरको नियमित बनाने में रुकावट नहीं
आती, कपायकी उपशन्ति होती है और वीतराग-भावकी वृद्धि करनेकी भी अनुकूलता हो जाती है। ऐसा परिणाम शङ्खके समान स्वेत वर्णके लेश्या जातीय-पुद्गलोंके सम्बन्धसे होता है। इस लेयामें मरनेवाला जीव सर्वार्थसिद्धि विमान तक पहुँचता है और ३३ सागर तककी स्थिति तक पा सकता है। जीव अधिक-से-अधिक चौदह अवस्थाओंमें रह सकता है अर्थात् जीवके चौदह भेद हैं:
१--सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, २--सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त ३-बादर एकन्द्रिय अपर्याप्त, ४-बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, ५-- बेइन्द्रिय अपर्याप्त, ६-येइन्द्रिय पर्याप्त, तेइन्द्रिय अपर्याप्त, ८-तेइन्द्रिय पर्यात, --चउरिन्द्रिय अपर्याप्त, १०--चउरिद्रिय पर्याप्त, ११--प्रसन्नी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त १२--असन्नी पञ्चेन्द्रिय