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________________ लेश्या अधिकार FASTमाका सहज स्वरूप स्फटिकके समान निर्मल है। aats उससे भिन्न परिणाम जो कृष्ण-नील आदि अनेक रंग वाले पुद्गल विशेषके असरसे होते हैं, उन्हें 'लेश्या' कहते है। दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिये कि जिसकद्वारा आत्मा कोसे लिप्त होता है तथा जो योग और कपायकी तरंगसे उत्पन्न होती हो उसको तथा मनके शुभाशुभ परिणामको 'लश्या' कहते हैं। ज्ञानियोंने लेश्याकं मुख्य दो भेद बताये हैं । १-द्रव्य श्या, और २-भाव लश्या। १-द्रव्य लेश्या-कर्म वर्गणास बनती है। फिर भी वे पाठ कर्मोसे भिन्न हैं। जैसे कार्मण शरीर। २-भाव लश्या-आत्माका परिणाम-विशेष है, जो संक्लेश और योगसे अनुगत है। ___ संक्लेशके तीत्र, तीव्रतर, तीव्रतम; मन्द, मन्दतर, मन्दतम आदि अनेक भेद हैं। भाव लेश्या अनेक प्रकारकी है। तथापि ज्ञानियोंने संक्षेपमें छह विभाग करके शास्त्रमें उसका स्वरूप दिखाया है। "जोगपडत्ती बेस्सा कषायउड्याएरंजिया होई" -गोम्मटसार । अर्थात् कषायोदयसे अनुरक्षित योगोंकी प्रवृत्तिको "बेश्या" कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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