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________________ ३३२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय - - (क) छाद्मास्थिक यथाख्यात संयम वह है, जो ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवालोंको होता है । ग्यारहवें गुणस्थानकी अपेक्षा बारहवें गुणस्थानमें विशेषता यह है कि ग्यारहवेंमें कषाय का उदय नहीं होता, उसकी सत्तामात्र रहती है; और बारहवेंमें तो कषायकी सत्ता भी नहीं रहती। (ख) अछामास्थिक यथाख्यात संयम कंवलियों को होता है। सयोगी केवलीका संयम 'सयोगि-यथाख्यात' और अयोगी केवलीका संयम 'अयोगि-यथाख्यात है। (६) कर्मबन्ध-जनक प्रारम्भ-समारम्भसे किसी अंशमें निवृत्त होना 'देशविरति संयम' कहलाता है। इसके अधिकारी गृहस्थ हैं। (७) किसी प्रकारके संयमका स्वीकार न करना 'अविरति' है। यह दशा पहिलसे चौथे तक चार गुणस्थानों में पाई जाती है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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