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खण्ड
* संयम -
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इसके बाद वे जिनकल्प ग्रहण करते हैं अथवा वे पहिले जिस गच्छ या टोलेके रहे हों, उसीमें दाखिल हो जाते हैं या फिर भी वैसी ही तपस्या शुरू कर देते हैं। परिहारविशुद्धि संयमके निर्विश्यमान और निविष्टकायिक, ये दो भेद हैं। वर्तमान परिहार विशुद्धिको 'निर्विश्यमान' और भूत परिहारविशुद्धिको 'निर्विष्टकायिक' कहते हैं।
(४) सूक्ष्मसांपराय-जिस संयममें सम्पराय ( कपाय) का उदय सूक्ष्म (अतिस्वल्प) रहता है, वह 'सूक्ष्मसम्पराय संयम' है। इसमें लोभ कषाय उदयमान होता है, अन्य नहीं । यह संयम दसवें गुणस्थानवालोंको होता है । इसके (क) संक्लिश्यमानक और (ख) विशुद्धयमानक, ये दो भेद हैं।
(क) उपशमणिसे गिरनेवालोंको दसवें गुणस्थानकी प्रापिके समय जो संयम होता है, वह 'संक्लिश्यमानक सूक्ष्म सांपराय संयम' है. क्योंकि उस समयके परिणाम संक्लेश-प्रधान ही होते जाते हैं।
उपशमणिसे क्षपकणिपर चढ़नेवालोंको दसवें गुणस्थानमें जो संयम होता है, वही 'विशुद्धयमानक सूक्ष्मसाम्पराय संयम' है, क्योंकि उस समयके परिणाम विशुद्धि-प्रधान ही होते हैं।
(५) जो संयम यथातथ्य है अर्थात् जिसमें कषायका उदयलेश भी नहीं है, वह 'यथाख्यात संयम' है। इसके ( क ) छानास्थिक और (ख) अछामास्थिक, ये दो भेद हैं ।