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________________ ३१४ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय - शुक्लध्यानके चार पदोंमेंसे आदिके दो पद शब्द, अर्थ तथा योगका कुछ आलम्बन लेते हैं, अतः ये आलम्बनसहित हैं और अन्तके दो पद केवलीभगवानके मोक्ष,जानेके पहिले अन्तिम कालमें होते हैं, अत: ये दोनों परम शुद्ध और पालम्बनरहित होते हैं। शुक्ल ध्यानीक जब तीनों योग रहते हैं. तब मनोयोग,वचनयोग और काययोग बदलते रहते हैं-शब्दस अर्थम और अर्थसे शब्द में संक्रमण होता रहता है। उस समय में विचार तथा नानावितर्क सहित शल ध्यिानका प्रथम पाद-पहिला भेद 'सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति' होता है। ___ शब्द, अर्थ और योगके आश्रयसे संक्रमण तीन प्रकारका जिनेन्द्र भगवान ने कहा है । ( १ ) एक शब्दका पालम्बन लेकर फर दूसरे शब्दका पालम्बन लेकर ध्यान करना शब्दसंक्रमण है। (२) काययोगसे वचनयोग और वचनयोगमे मनायोगम प्रवृत्त होना 'योगसंक्रमण है । और ( ३ ) एक पदार्थका विचार कर फिर उसे छोड़कर मरे पदार्थका विचार करना 'अर्थमंक्रमगा है। शब्दसंक्रमणा, अर्थमंक्रमण और योगमंक्रमगा, इस तरह तीन संक्रमण हैं। शक्लध्यानकं प्रकरणमे जो वीचार शब्द आता है. उसका अर्थ उक्त मंक्रमण है। जिस अवस्थामें शुक्लध्यानी मुनिक नीन योगामसे एक ही योग होता है. उस समय बहुपनेका प्रभाव होनेसे संक्रमण नहीं * "येकयोगकाययोगायोगानाम्", "वितर्क : श्रुतम्", "वीचारोऽर्थम्यानयोगसंक्रान्तिः"। -उमास्वाति।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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