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खण्ड
* ध्यानका स्वरूप *
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"गं जाय जीय पंच" अर्थात् एक मन को जीतनेसे पाँच इन्द्रियाँ वशमें हो जाती हैं। और भी कहा है कि
मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्धमाक्षयोः" अर्थात् कर्मसे बाँधनेवाला तथा छुड़ानेवाला मन ही है। "प्रसन्नचन्द्र" राजर्पिकी भाँनि मनको जीतनकी आवश्यकता है ।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि
"हे अर्जुन ! उनको वश करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि मन अनि चपल है परन्तु निरन्तर अभ्यास करने और वैराग्यसे मन वशमें हो सकता है।"
शुक्लध्यान सिफ़ आदर्श मुनि ही ध्या सकने हैं, गृहस्थको शक्तिम मवथा बाहर है।
शुक्लध्यानका आलम्बन मुनीश्वरोको शुक्ल ध्यानपर चढ़ने केलिये क्षमा, मार्दव, आर्जव और निर्लोभता, ये चार आलम्बन बताये गये हैं।
शुक्लध्यानक भंद शलध्यानके चार भेद हैं--(१) पृथक्त्ववितर्कवीचार, (२) एकत्ववितर्कवींचार. ( ३ ) सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और (४) व्युपरतक्रियानिवृनि । इनमसे पहले दो 'श्रुतकेवली'के और पीछेके दो 'कवली के होते हैं। ___ *"शुक्ल चाय पूर्वविदः", "पर केवलिनः", :पृथचकन्यवितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तीनि" ।
-उमास्वाति।