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खण्ड ]
* मनुष्य जीवनकी सफलता *
यदि मनुष्य के भाव - विचार इससे भी ऊपर बढ़ने के हों ' अर्थात् मनुष्य जन्मको पूर्णतया सफल बनानेके हों तो उसको मुनिवृत्ति ग्रहण करनी चाहिये । मुनिवृत्तिका स्वरूप निम्न प्रकार है:
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मुनिवृत्ति धारण करना तो सरल है, पर उसका पालना महा कठिन है। दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि साधुवृत्ति में जीतेजी मरना है । पर जिन्होंने इसके उद्देश्य को समझ लिया है, उनके लिये कोई मुश्किल चीज नहीं है। मुनिवृत्ति केवल वही स्त्री या पुरुष धारण कर सकते हैं, जिनका हर प्रकारसे सांसारिक सुख, आराम, वैभव व पदार्थोंसे - धन धान्य. स्त्री पुत्र, बन्धु, मित्र, भूमि, मान, अपमान, प्रेम, मोह, कष्ट, क्रोध, लोभ, यहाँ तक कि जीवन-मृत्यु से भी राग-द्वेष हट गया हो ।
मुनिको निम्नलिखित व्रत धारण करने पड़ते हैं, जिनको उसे जीवन पर्यन्त धैर्य व पुरुषार्थ और शान्ति भावसे निवाहने पड़ते हैं।
१- किसी प्रकारकी हिंसा मन, वचन और कायसे करे नहीं, करावे नहीं और करनेवालेको भला समझे भी नहीं ।
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२- किसी प्रकारकी असत्य भाषा मन, वचन और कायसे बोले नहीं, बुलवावे नहीं और बोलनेवालेको भला जाने भी नहीं । ३ - किसी प्रकारका श्रदत्तादान अर्थात् बग़ैर दी हुई वस्तु, मन, वचन और कायसे ले नहीं, लिवावे नहीं और लेनेवालेको भला जाने भी नहीं ।