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* जेल में मेरा जैनाभ्यास -
तृतीय
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करनेका विचार करते हैं, वे पहिले अपने घर-बार व व्यापारका सारा भार अपने बड़े पुत्र या भ्राता या जो कोई योग्य सम्बन्धी हो, उसको सौंप देते हैं और आप स्वयं घर छोड़कर किसी एकान्त स्थानमें या प्रोषधशालामें निवास करके प्रतिमाओंका पालन करना प्रारम्भ कर देते हैं । पहिली प्रतिमा एक मासकी, दूसरी दो मासकी, इसी प्रकार हर प्रतिमामें पिछला काल मिलाकर एकमहीना बढ़ता चला जाता है। अर्थात् दसवीं में दस महीने और ग्यारहवीं में ग्यारह महीने लगते हैं। इस प्रकार ग्यारह प्रतिमाओं में पाँच वर्ष छह महीने का समय लगता है । पहिली प्रतिमासे दूसरी प्रतिमामें, दूसरीसे तीसरी प्रतिमामें, इस प्रकार उत्तरोत्तर प्रतिमात्रओमें पूर्व-पूर्व की प्रतिमासे नियम, प्रत्याख्यान और तपस्या बढ़ती हुई होती है । यहाँ तक कि ग्यारहवीं प्रतिमामें करीब-करीब साध वृत्ति हो जाती है । बाल लौंच करना; भिक्षासे सूझता प्रहार लेना पृथ्वीपर शयन करना; अल्प वर रखना; इंस, मशक. शीत, उष्ण श्रादि परीपहें सहन करना आदि बातें यहींपर हो जाती है ।
इस प्रकारकी क्रिया करके प्राणी बहुत हद तक अपने मनुष्यजन्मको सफल बना सकता है।
अर्थात्-(१) दर्शन, (२) व्रत, (३) सामायिक, (७) प्रोषध, (५) सचित्तत्याग, (६) रात्रिभुक्तियाग, (७) ब्रह्मचर्य, (८) भारम्भत्थाग, (१) परिग्रहत्याग, (१०) अनुमतित्याग और (११) उदिष्टत्याग, ये श्रावककी ग्यारह प्रतिमाएँ है।