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खण्ड
* मनष्य-जीवनको सफलता *
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के बारह व्रत हैं, इनमेंसे जिसको जैसी शक्ति हो, वह उतने हीएकसे लेकर बारह व्रत तक ग्रहण कर सकते हैं।
इन समस्त व्रतोंका अभिप्राय यह है कि इच्छा, मन व इन्द्रियोंकी विषय-वासनाएँ कम की जायँ । कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ ) की गति मंद की जाय । सदा बुरे विचारों व भावोंसे दूर रहा जाय और अच्छे विचार व भावोंका सदा मनन किया जाय । ऐसा करनेम मनुष्यकी आत्मा क्रम-क्रमसे उच्च अवस्थाकी ओर अर्थात् त्यागकी ओर अग्रगामी होती जाती है। ___ बस, यही मनुष्य-जन्मको सफल बनानेका प्रारम्भिक सरल
और सीधा रास्ता है। ___ यदि गृहस्थ अथवा श्रावक या श्राविका बारह व्रत पालते हुये अपने मनुष्य-जन्मको और भी अधिक सफल बनानेका विचार रखते हों तो उनको श्रावककी प्रतिमाएं धारण करनी चाहिये । ___ जो श्रावक मुनिपद ग्रहण करनेको तो असमर्थ हैं, लेकिन श्रावक के बारह व्रत पालनेसे विशेष पराक्रम तथा त्याग करना चाहते हैं, बे एक विशेष त्याग-मार्गको ग्रहण करते हैं, जिसे 'प्रतिमा' कहते हैं। ये प्रतिमाएँ ग्यारह प्रकारकी होती हैं। जो श्रावक प्रतिमा धारण
'दंसणवयसामाइय-,पोसहसचित्तराइभत्ते य । ब्रह्मारंभपरिग्गाह-, मणुमणमुद्दिमदंदे ॥"