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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
४ - किसी प्रकारका मैथुन अर्थात् विषय-भोग मन, वचन और कायसे सेवे नहीं, सिवावे नहीं और सोनेवालेको भला जाने भो नहीं ।
५ – परिग्रह अर्थात् धन, धान्य, भूमि आदि मन, वचन और कायसे रखे नहीं रखावे नहीं और रखनेवालेको भला जाने भी नहीं ।
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उपरोक्त पाँच महाव्रतोंके अतिरिक्त और भी बहुत से नियमों को मुनि पालन करते हैं । यथा:
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१ - नंगे पैर और नंगे सिर रहते हैं। सदा पैदल चलते हैं । किसी भी प्रकारको सवारी, जैसे:- मोटर, रेल, घोड़ा, बैलगाड़ी आदिपर नहीं चढ़ते हैं ।
२ - चतुर्मास में अवश्य एक-स्थानपर चार मासके लिये निवास करते हैं, वरना सदा भ्रमण किया करते हैं। अधिक-सेअधिक एक स्थानमें एक माससे अधिक नहीं ठहरते हैं। इसके अतिरिक्त जहाँ एक चतुर्मास कर लेते हैं, वहाँ वे तीन वर्ष तक चतुर्मास नहीं करते हैं।
३ - मामूली श्वेत वस्त्र रखते हैं । कोई सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनते हैं । मामूली सूत्र व धर्मग्रन्थ और मामूली काष्ठके भोजन व जलकेलिये पात्र रखते हैं। वे उतना ही सामान रखते हैं, जिसे वे स्वयं लेकर चल सकें। वे किसी जानवर या आदमीपर अपना सामान लादकर नहीं चलते हैं।