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खण्ड]
* मनुष्य-जीवनकी सफलता *
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सोना-चाँदी अर्थात इतना वजनमें, इतनी कीमतका ।
धन अर्थात् रुपया, मुद्रा. जवाहरात जैसे हीरा. मोती, पन्ना श्रादि अमुक क्रीमतके। ___धान अर्थान नाज जैसे गेहूँ, चावल. जुबार इत्यादि अमुक रुपयोंका या अमुक मन तक रखना या व्यापार थादि करना।
द्विपद अर्थात दाम, दामी नौकर, चाकर. मुनीम, गुमान्त इत्यादिकी गिनती तथा अमुक रुपये माहवारके रम्बने । ____चौपद अर्थात गाय, बैल, भैस, घोड़ा इत्यादि अाजकल माटर, र. वाई जहाज. पानी के जहाज आदि वाहन अमुक संख्या में और श्रमक रुपनाकी नादाद के रखने । ___ कुष्य अर्थात अनेक धातु, जैसे ---पीनल. लोहा. संग, तांबा इत्यादि अथवा वस्त्र प्रादि अमुक तादाद नक रम्बना या व्यापार करना।
इनके अतिरिक्त अाजकल बहुतसी वस्तुप्रांका व्यापार किया जाता है या व घर में रकम्बी जाती है । इस कारण जहाँतक बन सके, उन सभी वस्तुओकी मर्यादा कर लेना चाहिये। क्योंकि मनुप्यकी इच्छाएं अनन्त हैं। और वे उत्तरोत्तर हमेशा बढ़ती भी
एक प्राचार्यन तो लिखा है कि"श्राशागतः प्रतिप्राण. यस्मिविश्वमरापमम् । कस्य किं कियदायाति, वृथा वो विषयपिता ।"
-गुणभद्र भदन्त ।