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खण्ड]
* मनुष्य-जीवन की सफलता *
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देकर हजम कर जाना। इनके अतिरिक्त बहुतसे मनुष्य हँसीमजाकमें और बात-बातमें झूठ बोला करते हैं. यह भी सवथा त्यागने योग्य है। आज-कल झूठका प्रचार बहुत बढ़ गया है। क्या जैन, क्या अजन, प्रायः सभी लोग अकसर झूट बोला करते हैं। उसीका यह कारण है कि आये दिन उन्हें नई-नई तक लोकों का सामना करना पड़ रहा है। क्या दुकानदार, क्या ग्राहक, क्या वकील, क्या मुवक्किल, क्या डाक्टर, क्या गेगी, क्या म्वामी, क्या मवक, क्या स्त्री. क्या पुरुष इत्यादि विशेप कर मठका ज्यादा प्रयोग किया करते हैं। जिम जमाने में लोग मठका प्रयोग बहुत कम करते थे, प्रायः सत्य ही बोला करने थे, उस समय मन्यके प्रभावसे बड़े-बड़े चमत्कार नजर पाया करते थे। नदियाँ जलपूर्ण होकर बहती थी; देवता नोकरके समान कार्य करने थे: मप पुरमालाके ममान हो जाया करता था; विप अमृत के समान, शत्र मित्र के समान और जल थल के ममान हो जाया करता था। मनुष्य यदि अच्छा और उमतिका समय चाहते हैं तो उनको झटका त्याग और सत्यका ग्रहण करना चाहिये।
तीसरा त 'प्रचौयागात्रत' है। इसका अर्थ है-बिना दी दुई वस्तु नहीं लेनी। इस बनके भी निम्न लिखित पांच अतीचार है:
* "म्तेनप्रयोगतवाहनादानविरुवराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोम्मानप्रतिरूपकम्यवहाराः।"
-उमास्वाति ।