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________________ २६० * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * तृतीय (१) स्तेनप्रयोग-चोरी करनेकी युक्ति बतलाना, चोरी करनेकी चोरको अनुमति देना। (२) तदाइतादान-चोरीका माल लेना। (३) विरुद्धराज्यातिक्रम-राजाकी उचित आज्ञाका उल्लछन करना। (४) हीनाधिकमानोन्मान-कम वजनके बॉटोंसे या छोटे गजस सामान देना और अधिक वजनके बाँटोंसे या बड़े नापर्क मात्रासे, बड़े गजसे सामान लेना आदि । (५) प्रतिपकव्यवहार-अच्छी या असली वस्तुन बुरी या नकली वस्तु मिलाना । ___ पड़ा हुश्रा, भूला हुआ, खोया हुआ, छूटा हुआ और रखा हुआ परधन 'अदत्त' कहलाता है। मुज्ञ पुरुषों को यह कदापि नहीं लेना चाहिये । जो प्राणी अदत्त अर्थात बिना दी हुई वस्तुको ग्रहण नहीं करते, वे सिद्धि प्राप्त करते हैं: कीर्नि उनकी चिरसंगिनी बनती है: गंग व दोप उनसे दूर रहते हैं। सुगति उनकी पृहा करती है। दुर्गति उनकी ओर देख भी नहीं सकती और विपत्ति तो उनका सर्वथा त्याग ही कर देती है। अधिकतर हमारे गृहस्थ और भाई सिर्फ ऐसे माल लाना या किसीको जबरदस्ती लूटना इत्यादिको ही चोरी समझते हैं। पर वास्तव में किसी ग्राहकको नापमें कपड़ा कम देना, सामान
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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