SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ * जलमें मरा जैनाभ्यास * हनीय करनी चाहिये और अपनी आत्माकं समान दूसरे सब प्राणियों को समझना चाहिये। दूसरा व्रत गृहस्थका-'सत्यागुत्रत-मृपावादविग्मण' है। इसका अर्थ है-भूठ नहीं बोलना। इस व्रतकं भी निम्नलिखित पाँच अतीचार है। (१) मिथ्योपदेश-सिद्धान्त-विरुद्ध कुगति लेजानेवाना उपदेश देना, किसीको झटा कलंक लगाना श्रादि । ___(२) रहोभ्याख्यान-एकान्त में किमीके साथ किये हर किसी गुन कार्यको प्रकट कर देना। (३) कूटलेखक्रिया-मॅट नमम्मुक लिम्बना, यह बात भैठा जमा-खर्च करना, भैठे तार-चिट्टी देना आदि । (४) न्यासापहार-किसीकी धरोहर आदिको मुकरजाना आदि। (५) साकारमन्त्रभेद-किसीकी गत वातको किमी तरह जानकर उमे प्रगट कर दना आदि। इनके अतिरिक्त मुन्न पुरुषों को निम्नलिग्विन प्रधान पञ्चकूट का भी त्याग करना चाहिये १-कन्या विपयकृट, २--पशु विषयकूट, ३--भूमि विषय कूट, ४ - मँठी गवाही देना और ५--किसीकी धरोहरको न ६) "मिथ्योपदेशरहोभ्याम्यानकटले क्रियान्यासापहारमाकारमन्त्रभेदाः" -उमास्वाति
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy