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खण्ड ]
* मनुष्य जीवनकी सफलता *
(१) वध - मनुष्य, पशु, जलचर आदि जीवोंको अस्त्र-शस्त्र या लकड़ी श्रादिसे मारना - प्रहार करना |
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(२) बन्ध - मनुष्य या किसी प्रकारके जीवको कड़ाईसे बाँधना या पिंजरे, जाल इत्यादिमें बन्द कर देना ।
(३) विच्छेद - मनुष्य पशुओं आदिके कान, नाक आदि taraiको छेदना, काटना, खम्सी बनाना आदि ।
(४) श्रतिभारारोपण - मनुष्य व पशुश्रपर उनकी शक्तिसे अधिक बोझ - भार लादना उनसे अधिक समय तक मेहनत लेना, उन्हें अधिक चलाना आदि ।
(५) अन्न-पान-निरोध- पशुओं या मनुष्यों को उचित समय पर भोजन नहीं देना, कम देना, खराव देना आदि ।
जो प्राणी उपरोक्त दूषरणोंको टालते हैं अर्थात दयाका पालन करते हैं, उनको दीर्घायु प्राप्त होती है, श्रेष्ठ शरीर मिलता है. उच्चगोत्र प्राप्त होता है, विपुलधन मिलता है, बाहुबलके के धनी होते हैं, इसके अतिरिक्त उन्हें उच्च कोटिका स्वामित्व अखण्ड आरोग्य और सुयश मिलता है, और संसार सागरका पार करना उनके लिये सहज हो जाता है। संसार में धन, धन और धरा (पृथ्वी) के देनेवाले लोग तो सहज मिल जाते हैं, किन्तु प्राणियोंको अभय देनेवाले लोगों का मिलना कठिन है । मनुष्यों को कृमि, कीट पतंग और तृण (वृक्ष) आदिपर भी दया