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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
श्रावकों (गृहस्थों ) को इन पाँच अतिचारोंसे रहित सम्यक्त्व का पालन करना चाहिये ।
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इसके अतिरिक्त गृहस्थको अहिंसागुव्रत, सत्यात्रत, ब्रह्म चर्यागुव्रत, अचौर्यागुत्रत और परिग्रहपरिमाणागुत्रत, ये पाँच अणुव्रत दिखत, देशावकाशिकान और अनर्थदण्डव्रत, ये तीन गुणव्रत तथा सामायिक, प्राषधोपवास, उपभोग-परिभोग परिमाणत और अतिथिसंविभाग, ये चार शिक्षाव्रत, इस तरह कुल बारह* व्रत भी निरतिचार रूपसे पालन करना चाहिये | बारह व्रत और उनके अतिचारोंका वर्णन निम्न प्रकार है ।
आवक के बारह व्रत में प्रथम व्रत अहिंसागुव्रत - प्राणानि पातविरमणत्रत है। इसका अर्थ है-जीवकी हिंसा नहीं करनी । सिर्फ जीवको शरीर से पृथक करना ही हिंसा नहीं है, बल्कि किसीको छेदना, भेदना, मारना पीटना, आदि सभी हिंसामे गर्भित हैं ।
शास्त्रकाराने पहिले व्रतके निम्नांत पाँच अतिचार अर्थात दृपण बतलाये हैं जो कि त्यागने योग्य है
* "गृहिणां ग्रंथा तिष्ठत्य गुगुण शिक्षायतात्मकं चरणम् ।
पञ्चत्रिचतुर्भेदं
वयं
यथासंख्यमाख्यातम् ॥
"
-स्वामी समन्तभद्राचार्य |
- उमास्वाति ।
"बन्धवदेशतिभारारोपणानपाननिरोधाः" ।