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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास
[तृतीय
मेंढ़क आदि। इस जातिमें भी यह जीव संख्यातकाल तक रह पाया है।
जब कहीं जीवके विशिष्ट पुण्यका उदय फिर प्राप्त होता है, तब कहीं इसे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय योनि प्राप्त होती है। संज्ञी पञ्चेन्द्रियके भी कई भेद हैं। जलचर-जलमें चलनेवाले; जैसे-मछली, मगर आदि । स्थलचर-पृथ्वीपर विचरनेवाले; जैसे-गाय, घोड़ा इत्यादि । खेचर-आकाशमें उड़नेवाले; जैसे-तोता, कबूतर आदि। उरःपरिसर्प-पेटके बल चलनेवाले; जैसेसाँप, कांतर श्रादि । भुजपरिसर्प-भुजाओंके बलसे चलनेवाले; जैसे-चूहा, नेउला आदि । __ इन सब जातिवाले जीवोंके भी लाखों प्रकारकी जातियों व करोड़ों कुल होते हैं। और उत्कृष्ट आयु करोड़ों पूर्व की होती है। इन सब जातियों में यह जीव असंख्यात वर्ष अनेक बार रह आया है। ___ जब जीवके अधिक पुण्यकी प्राप्ति होती है, तब कहीं यह जीव मनुष्य-योनिको प्राप्त करता है। ___ मनुष्य-योनिमें भी बहुतसे जीव गर्भ में ही मर जाते हैं और यदि पैदा हुए तो बहुतसे जीव पैदा होते-होंने कालको प्राप्त करते हैं और यदि जन्म भी ठीक प्रकारसे हो गया तो बहुतसे जीव लड़कपनमें ही मृत्युको प्राप्त हो जाते हैं । यदि कहीं लड़कपनसे मी निकल गये तो बहुतसे जीव युवा अवस्था में इस संसारको