________________
बरार]
* मनुष्य-जीवनकी सफलता *
२४६
छोड़कर चल बसते हैं । बहुत थोड़े जीव ऐसे होते हैं जो पूर्ण आयुको प्राप्त करते हैं । यदि पूर्ण आयु भी प्राप्त हुई तो इससे भी मतलब हल नहीं होता। क्योंकि कोई मनुष्य अन्धा है, बहरा है, लँगड़ा है, लूला है अर्थात पृग इन्द्रियाँ मिलना भी अत्यन्त आवश्यक है।
यदि पूगा आयु और पूर्ण इन्द्रियों भी प्राप्त हो गई तो इनसे भी मनुष्य-जन्मका मन्तव्य सिद्ध नहीं होता। क्योंकि यदि आदमी किसी प्रकार बीमार हो, जैसा कि प्रायः देवा जाना है के ननुष्य प्रायः बीमार रहा करते हैं, तो भी वह आत्म-कल्यागा नहीं कर सकता। इस कारमानीगंग शरीर का होना भी अत्यन्त पावण्यक है।
यदि पृण इन्द्रियाँ, पर यात्रु और नीगंग शरीर भी मिल । राया तो भी मनुष्य-जन्म पाने का मतलब सिद्ध नहीं हो सकता।
क्योकि यदि उक्त नीनों बाने प्राप्त होगई और कही जंगली जानियों में, नीच कोममें हवाशयों में या अफरीका अादि क्षेत्र में पैदा होगये तो वहाँ मनुष्य अपना जन्म कैसे मफल बना सकता है ? इस कारण उनम जाति तथा क्षेत्रका मिलना भी बहुत आवश्यक है।
यदि मनुष्य-जन्म भी मिला, पूर्ण इन्द्रियाँ भी मिली, पूर्ण आयु भी मिली, उत्तम क्षेत्र व उत्तम कुल भी मिल गया तब भी • मनुष्य जन्म सफल बनाना बड़ा कठिन है। क्योंकि यदि कहीं