SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ * जेलमें मेरा जेनाभ्यास * [तृतीय कर धनोपार्जन करते हैं-इस पदको अपनी आजीविकाका साधन बना लेते हैं। वे लोग ऐसे ही हैं जैसे कि जो लोग अपनी पूजनीया मातासे वेश्यावृत्ति कराकर अपना ऐश-आराम भोगत हों। एक वे भी लोग हैं जो करोड़ोंकी सम्पत्ति छोड़कर, चक्रवर्तित्व छोड़कर इस पदको अपनाते हैं और एक ये भी हैं जो उससे धनोपार्जनकी अाशा रखते हैं ! भाई ! धनोपार्जनका तो मार्ग ही दूसरा है । यह पद तो उसे छोड़ देने के बाद प्राप्त होता है। (६६) मनको गन्दे विचारोंसे अलग रखनेका उपायः १- नवकार मन्त्रका जाप करना, २-श्रालस्यमे वचना ३-कुसंगसे सदा दूर रहना. ४-धुरी किताबों व उपन्यासीको नहीं पढ़ना. ५-नाच-तमाशा. नाटक चेटक आदिमें नहीं जाना. ६-अपने खान-पान. रहन-सहन और जीवनपर विचार करते रहना. ७-इन्द्रियों को विषयोंकी ओरसे रोकना, ८-जब-जब बुरे विचार उठे. उसी समय उनको चित्तसे निकाल देना. - एकान्त स्थानमें बैठकर मन और इन्द्रियोंकी वृत्तिको रोककर ध्यान करना. १०-परमार्थी शिक्षाको सदा याद रखन! ११-सदा मृत्यु और नरकों के कष्टों को याद करते रहना। (७०) अनन्त ज्ञान, अनन्त मुख, अनन्त बल, दया, क्षमा, सन्तोष, परोपकार आदि आत्मा म्वामाविक गुण है । लेकिन कर्मके संयोगसे इनका अनुभव इस संसाती जीवको नहीं होता। इसके कारण यह सदैव क्लेशित रहता है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy