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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [मृतीय जाते हैं, उसी प्रकार प्राणी भी इस संसाररूपी वृक्ष में प्रा-श्रा कर बसते हैं और रात्रिके समान कुछ समय यहाँ रह-रह कर चल बसते हैं । इस कारण इस अल्प समयको विचारशील पुरुपोंको नष्ट न करके सदा उपयोगमें लाना चाहिये। (५४) इस जगन्में जितने भी राजा, महाराजा, चक्रवर्ती, देवता, इन्द्र आदिके सुख, वैभव व ऐश्वर्य हैं, वे सब क्षणिक अर्थात् शामके चमकीले बादलों के समान हैं। जो देखने में अतिसुन्दर दीख पड़ते हैं, परन्तु देखते-देखते ही बिलाय जाते हैं। (५५) यह काल बड़ा बलवान है। जैसे यह बालकको प्रसता है, वैसे ही वृद्धको प्रसता है. जैसे धनादय पुरुपको प्रसता है, उसी प्रकार यह दरिद्रको प्रसता है और जिस प्रकार यह शरवीरको प्रसता है, उसी प्रकार कायरको प्रसता है। इसी प्रकार यह जगतके समस्त जीवों को प्रसता है। यों कहना चाहिये कि किसीको इसका विचार नहीं है। इस कारण विचारवान पुरुपोंका यही कर्तव्य है कि पूर्व-से-पूर्व ही इसके स्वागत करनेकेलिये उन्हें तय्यार रहना चाहिये । ताकि अन्त समय पछताना न पड़े। (५६ ) जिस समय प्राणीका अन्त पा जाता है, उस समय उसको उसके सगे-सम्बन्धी, मित्र-दोस्त, डाक्टर-वैद्य, धनवैभव आदि कोई भी नहीं बचा सकते । इस कारण विचारवान पुरुषोका यही कर्तव्य है कि वे शान्ति के साथ समाधिमरण करें.. जिसको 'पण्डितमरण' भी कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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