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________________ खण्ड] * मुमुक्षुओंकेलिये उपयोगी उपदेश * २२६ विनाशीक और जीवनको मारणान्तिक जानकर अपने अमूल्य मनुष्य-जन्मको व्यर्थ न गॅवा । (५०) इस जगत्में समय पुकार २ कर कह रहा है कि हे भव्य प्राणियो ! जो कुछ अपना कल्याण करना चाहते हो, उसे शीघ्र कर डाली। नहीं तो बादमें पछताना पड़ेगा। क्योंकि जो समय अथवा घड़ी निकल जाती है, हजार यत्र करने पर भी वह वापिस नहीं लाई जा सकती। इस कारण चतुर मनुष्योंको समयका सदा मद् उपयोग करनेकेलिये तत्पर रहना चाहिये । (५१) हमारे देखन-देखने पुत्र, बन्धु, स्त्री, मित्र आदि चले जाते हैं अर्थात कालको प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार एक दिन यह हमारा आत्मा इस नाशवान शरीरको छोड़कर रवाना होजायगा । इस कारण हमको सबसे पहले विनाशीक शरीरद्वारा अपने जन्मको उत्तम व रच कार्याने सफल बनाना अत्यन्त आवश्यक है। (५२) देखो ! मनुष्यों का प्रवतन कैसा आश्चर्यकारक है कि शरीर तो प्रातदिन छीजता जाता है और पाशा पीछा नहीं छोड़ती है, किन्तु बढ़ती जाती है। तथा आयु तो दिन-दिन घटती जाती है और अशुभ कर्मा ने बुद्धि बढ़ती ही जाती है। मोह तो नित्य स्फुरायमान होता है और यह प्राणी अपने हित व कल्याण-मार्गमें नहीं लगता है। यह सब अज्ञान का माहात्म्य है। । (५३) जिस प्रकार पक्षी नाना दिशाओंसे श्रा-आकर सन्ध्या के समय वृत्तोंपर घसते हैं और मुबह होते ही उड़-उड़ कर चले
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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