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खण्ड] * मुमुक्षुओंकेलिये उपयोगी उपदेश* २२७ प्रत्येक अवसरसे लाभ उठाना चाहिये और अपने मनुष्य-जन्मको सफल बनाना चाहिये ।
(४२) धर्म एक विज्ञान या विद्या है, जिसका अभिप्राय मनुष्य को संसारके दुःखां, आतापों और आवागमनके चक्रसे छुड़ाकर उत्तम सुख अर्थात परमानन्द अवस्थामें सदाकेलिये स्थिर करना है।
(४३) धर्मकार्य करनेसे मनुष्य का केवल यही अभिप्राय होना चाहिये कि उसको अनन्त अविनाशी अक्षय सुख की प्राप्ति हो, जो कि संसारी अवस्था नहीं मिल सकता है।
(४४) अधिकतर मनुष्योंक संमार में धन-दौलत, मान-मर्यादा, स्त्री-पुत्र, भोग विलास इत्यादि उद्देश्य हुआ करते हैं, परन्तु ये सब-के-सब केवल इन्द्रिय-सुम्ब हैं, जो वास्तव में सुम्ब नहीं हैं। किन्तु मुम्बाभास हैं, जोकि स्थूल दृष्टि से देखनेवालों को मुखसमान मालूम होते हैं। इसका कारगा यह है कि यह सुख क्षणिक है। इनसे
आत्माकी तृप्ति आजतक नहीं हुई है. हालांकि यह जीव इस प्रकार के सुखोंको अनन्न कालसे भागता आता है।
(४५) विद्वानाने इन्द्रियों को दहकती हुई अग्निकी भांति कहा है,क्योंकि जितना जितना सुख और भोगविषयम्प ईधन इन
अग्निरूप इन्द्रियोंपर डाला जाता है, उतनी उतनी उनकी इच्छारूपी , बाला प्रचण्ड होनी जाती है ।
* "न जानु कामः कामानिरुपभोगेन शाम्पति ।
हविधा कृष्णावरमेव भूप एवाभिवर्धते ॥"