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खण्ड
* नवतत्त्व अधिकार *
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४-'आकाश' संसारके समस्त पदार्थोंको अवकाश देता है। ५-'काल' नयेको पुराना बनाता है।
पुद्गल द्रव्य रूपी है। शेष धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल और आकाश अरूपी हैं। यद्यपि रूपी शब्दके अनेक अर्थ हैं परन्तु यहाँपर परमागमके अनुसार मूर्तीका अर्थ ही समझना चाहिये।
धान्तिकाय द्रव्य, अधर्मास्तिकाय द्रव्य और आकाश, ये तीन द्रव्ये एक-एक हैं । जीव, पुद्गल और काल, ये तीनों अनेक हैं।
आगमानुसार जीव द्रव्य अनन्तानन्त हैं। पुद्गल परमाणु जीवों से अनन्तगुणे हैं और काल द्रव्यके अणु असंख्यात हैं।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाश, ये तीनों द्रव्ये हलन चलन रूप क्रियासे रहित हैं। 'लोक' उसको कहते हैं जहाँ जीव आदि ममस्त पदार्थ हो, जहाँ एक आकाश ही है उसे 'अलोक' कहते हैं। वहाँ सिवाय पाल अर्थात् आकाशके कोई वस्तु नहीं होती है। जिस प्रकार कुप्पमें घी भरा रहता है, उसी प्रकार समस्त लोकमें धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल, पुद्गल और जीव द्रव्यं ठसाठस भरी हुई हैं। __ जितने क्षेत्रको एक परमाणु रोकता है, उतने क्षेत्रको एक 'प्रदेश' कहते हैं। ___धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकायके असंख्यात-असंख्यात प्रदेश हैं। आकाश द्रव्यके अनन्त प्रदेश हैं। लोकाकाशके