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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
अजीव
अजीव द्रव्य पाँच प्रकार के हैं: - १ - पुद्गल, २-धर्मास्तिकाय, ३ - अधर्मास्तिकाय, ४ - काल और ५- आकाश ।
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[द्वितीय
पुद्गल भी एक द्रव्य है । यह सदासे है और सदा रहेगा । इसको न कोई कम कर सकता है और न अधिक । जितना है उतना ही रहता है । वह अपनी पर्याय पलट लिया करता है अर्थात किसी-न-किसी शक्ल में विद्यमान रहता है। पुद्गल तत्त्वका दूसरा नाम अजीव है । अँगरेजीमें इसको matter कहते हैं । यह जीवका प्रतिपक्षी होने से इसका गुण अचैतन्य, अकर्ता, जड़ रूप है। इसके सूक्ष्म से सूक्ष्म हिस्सेको, जिसका कि दूसरा भाग न हो सके, 'परमाणु' कहते हैं। दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध, तीन परमाणुओं के मिलनेसे तीन प्रदेशी स्कन्ध होता है और इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध तक इसके हो सकते हैं
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१ - संसार में जितने जड़ पदार्थ दिखलाई पड़ते हैं, वे सब 'पुद्गल' हैं ।
२ - 'धर्मास्तिकाय' वह अरूपी शक्ति है, जो जीवको चलने में सहायता करती है। जैसे पानी मछलीको तैरने में सहायता करता है।
३- 'अधर्मास्तिकाय' वह शक्ति है, जो ठहरते हुये जीवको ठहरने में सहायता करता है। जैसे कड़ी धूपमें चलते हुये किसी पथिकके ठहराने में किसी पेड़की छाया सहायक होती है।