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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * अजीव अजीव द्रव्य पाँच प्रकार के हैं: - १ - पुद्गल, २-धर्मास्तिकाय, ३ - अधर्मास्तिकाय, ४ - काल और ५- आकाश । २०० [द्वितीय पुद्गल भी एक द्रव्य है । यह सदासे है और सदा रहेगा । इसको न कोई कम कर सकता है और न अधिक । जितना है उतना ही रहता है । वह अपनी पर्याय पलट लिया करता है अर्थात किसी-न-किसी शक्ल में विद्यमान रहता है। पुद्गल तत्त्वका दूसरा नाम अजीव है । अँगरेजीमें इसको matter कहते हैं । यह जीवका प्रतिपक्षी होने से इसका गुण अचैतन्य, अकर्ता, जड़ रूप है। इसके सूक्ष्म से सूक्ष्म हिस्सेको, जिसका कि दूसरा भाग न हो सके, 'परमाणु' कहते हैं। दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध, तीन परमाणुओं के मिलनेसे तीन प्रदेशी स्कन्ध होता है और इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध तक इसके हो सकते हैं 1 १ - संसार में जितने जड़ पदार्थ दिखलाई पड़ते हैं, वे सब 'पुद्गल' हैं । २ - 'धर्मास्तिकाय' वह अरूपी शक्ति है, जो जीवको चलने में सहायता करती है। जैसे पानी मछलीको तैरने में सहायता करता है। ३- 'अधर्मास्तिकाय' वह शक्ति है, जो ठहरते हुये जीवको ठहरने में सहायता करता है। जैसे कड़ी धूपमें चलते हुये किसी पथिकके ठहराने में किसी पेड़की छाया सहायक होती है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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