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________________ खण्ड] * नवतत्त्व अधिकार * १६१ १८-आहार-द्रव्यसे अनन्तप्रदेशी स्कन्धका आहार करता है। क्षेत्रसे असंख्यातप्रदेश-अवगाही पुद्गलों का आहार करता है। कालस अन्यतर समय स्थितिवाले अर्थात् जघन्यस्थितिवाले, मध्यमस्थितिवाल व उत्कृष्टस्थितिवाल पुद्गलोंका थाहार करता है और मावसे वर्णमय, गन्धमय, रसमय और स्पर्शमय पुद्गलोंका आहार करता है । और आत्म-प्रदेशके साथ अवगाहे हुए पुद्गलों का आहार करता है। १६-उपपात-तियञ्च और मनुष्योमसे उत्पन्न होता है। तियञ्च में भी असंख्यात वपक आयुष्यवाले पर्याप्त व अपर्याप्त जीव उत्पन्न नहीं होते। वैसे ही असंख्यातवर्षक आयुष्यवाले अकर्मभूमिकं मनुष्य भी उत्पन्न नहीं होते। २०-स्थिति-जघन्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त । २१-समाहाय-समोहता और असमाहता दोनों प्रकारका मरण करता है। २२-च्यवन-यह जीव नारकी व देवसे उत्पन्न नहीं होता है। सिर्फ तिर्यञ्च और मनुष्य से उत्पन्न होता है। २३-ति-प्रागति-तिर्यञ्च और मनुष्य इन दो गतिओं में जाता है। __ आत्मा और केवलज्ञान सांसारिक सुख या दुःखके होने में राग-द्वपकी तीव्रता कारण है। जब राग अतितीन हो जाता है, तब सांसारिक सुख और
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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