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________________ खण्ड] * नवतत्त्व अधिकार * १७५ - २-अप (पानी) कायके भी दो भेद-सूक्ष्म और बादर । इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, इस प्रकार चार भेद होते हैं। ३-तेऊ (अग्नि ) कायके भी दो भेद-सूक्ष्म और बादर । इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, इस प्रकार चार भेद होते हैं। ४-वायुकायके भी दो भेद-सूक्ष्म और बादर । इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, इस प्रकार चार भेद होते हैं। ____५-वनस्पतिकायके भी सूक्ष्म और बादर, इस तरह दो भेद होते हैं। वनस्पतिके प्रत्येक और साधारणके भेदसे दो भेद और होते हैं। एक शरीरका जो एक जीव अधिष्ठाता हो, उसे 'प्रत्येक वनस्पति और एक शरीरके अनन्तानन्त जीव अधिष्ठाता हो, उसे 'साधारण वनस्पति' कहते हैं। इन तीनों प्रकारके वनस्पति जीवोंके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद होनेसे वनस्पति के छह भेद होते हैं। ६-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय, इन तीनोंके पर्याय और अपर्याप, इस प्रकार छह भेद होते हैं। ७- पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चके भेद बताये जाते हैं: १-मगर-मच्छ आदि जलचर जीवोंके चार भेद-सैनी, असैनी, पर्याम और अपर्याम । २-गाय-बैल आदि स्थलचर जीवोंके चार भेद-सैनी, असैनी, पर्याप्त और अपर्याप्त ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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