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खण्ड ]
नवतत्त्व अधिकार #*
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जीवके साथ सदा दो शरीर तैजस और कामेण तो रहते ही हैं; अगर तीन हों तो श्रदारिक, तैजस और कार्मण होते हैं अथवा वैक्रयिक, तैजस और कार्मण, ये तीन भी होते हैं । परन्तु ये देव तथा नरक गतिमें ही होते हैं। यदि किसीके एक साथ चार शरीर हों तो औदारिक, आहारिक, तैजस और कार्मण होते हैं । बस, एक साथ एक जीवके एक समय में चार से अधिक शरीर नहीं हो सकते ।
जीवकी गति
एक शरीरको छोड़ कर नया शरीर धारण करने के लिये जीव जो गति अर्थात् गमन करता है, वह कार्मण शरीरके योगके द्वारा ही करता है। जीवकी इस गतिको 'विग्रह गति' कहते हैं और वह आकाशके प्रदेशानुसार ही होती है, अन्य प्रकार नहीं ।
एक शरीरको छोड़ कर जीव जब नया शरीर धारण करता है तो उसको अधिक-से-अधिक तीन समय लगते हैं। चौथे समय में अवश्य वह नवीन शरीरके योग्य पुद्गल ग्रहण कर लेता है। जो जीव मोड़ा बिना गमन अर्थात् सीधा गमन करता है, वह एक समय मात्र में ही नवीन शरीरके योग्य पुद्गल ग्रहरण कर लेता है।
मुक्त जीवकी गति वक्रता रहित ( मोड़ा रहित ) सीधी होती है, अर्थात् मुक्त जीव एक समय में सीधा सात राजू ऊँचा
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