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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * द्वितीय उनके पास जाकर प्रश्नका उत्तर लाकर मुनिराजोंको समाहितचित्त करता है। इस प्रकारके पुतले रूपी शरीरको 'श्राहारिकशरीर' कहते हैं। ४-ग्रहण किये हुए श्राहारको जो पचावे, उसको 'तेजस शरीर' कहते हैं। ५-ज्ञानावरणादि आठ कर्मोके समूहको 'कार्मण शरीर' कहते हैं। यह शरीर संसारी जीवके हर हालतमें रहता है और उसके परिभ्रमणका यही कारण होता है। ___ औदारिक शरीरसे वैक्रयिक शरीर सूक्ष्म होता है, वैक्रयिकसे आहारिक सूक्ष्म होता है, आहारिकसे तैजस सूक्ष्म होता है और तैजससे कार्मण शरीर सूक्ष्म होता है। औदारिक शरीरमें जितने परमाणु हैं, उनसे असंख्यगुणे परमाणु वैक्रयिक शरीरमें हैं। वैक्रयिक शरीरसे असंख्यगुणे परमाणु आहारिक शरीरमें हैं। तेजस और कार्मण शरीर अनन्तगुणे परमाणुवाले होते हैं अर्थात् श्राहारिकसे अनन्त गुणे परमाणु तैजस शरीरमें हैं. और तेजससे अनन्तगुणे परमाणु कार्मण शरीरमें होते हैं। तैजस और कार्मण शरीर आत्मासे अनादि कालसे सम्बन्ध रखते हैं अर्थात् ये दोनों शरीर संसारके समस्त जीवोंके साथ अनादिसे लगे हुए हैं और तब तक जीवके साथ लगे भी रहेंगे जब तक उसकी मुक्ति नहीं हो जाती है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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