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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास -
[द्वितीय
कम-बन्धके मुख्य हेतु कर्म-बन्धके मुख्य हेतु चार हैं । वे निम्न प्रकार हैं:१-मिथ्यात्व, २-अविरति, ३-कषाय और ४-योग।
(१) मिथ्यात्व-आत्माका वह परिणाम है, जो मिथ्यामोहनीय-कर्मके उदयसे होता है और जिससे चित्तमें कदाग्रह, संशय आदि दोष पैदा होते हैं।
(२) अविरति-वह परिणाम है, जो अप्रत्याख्यानावरण कषायके उदयसे होता है और जो चारित्रको रोकता है।
(३) कषाय-वह परिणाम है. जो चारित्रमोहनीयके उदयसे होता है और जिससे क्षमा, विनय, सरलता, संतोष, गम्भीरता आदि गुण प्रकट नहीं हो पाते या बहुत कम प्रमाणमें प्रकट होते हैं।
(४) योग-आत्म-प्रदेशोंके परिस्पन्द (चाञ्चल्य ) को कहते हैं, जो मन, वचन या शरीरके योग्य पुद्गलोंके आलम्बनसे होता है।
(क) मिथ्यात्वके पाँच भेद होते हैं । वे निम्न प्रकार हैं:
१-श्राभिग्रहिक, २-अनाभिग्रहिक, ३-श्राभिनिवेशिक, ४-सांशयिक और ५-अनाभोग ।
® इन पाँचोंमेंसे आभिग्रहिक और अनाभिग्रहिक, ये दो मिथ्यात्व गुरु हैं और शेष तीन लघु; क्योंकि ये दोनों विपर्यासरूप होनेसे तीव्र क्लेशके कारण हैं और शेष तीन विपर्यासरूप न होनेसे तीव्र क्लेश के कारण नहीं हैं।