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खण्ड]
* कर्म अधिकार *
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१-तत्त्वकी परीक्षा किये बिना ही किसी एक सिद्धान्तका पक्षपात करके अन्य पक्षका खण्डन करना 'आभिग्रहिक मिथ्यात्व है। ___२-गुण-दोषकी परीक्षा किये बिना ही सब पक्षोंको बराबर समझना 'अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व' है। ____३-अपने पक्षको असत्य जानकर भी उसको स्थापना करनेके लिये दुरभिनिवेश (दुराग्रह) करना आभिनिवेशिक मिथ्यात्व' है।
४-ऐसा देव होगा या अन्य प्रकारका, इसी तरह गुरु और धर्मके विषयमें संदेह-शील बने रहना 'सांशयिक मिथ्यात्व' है।
५-विचार व विशेष ज्ञानका अभाव अर्थात मोहकी प्रगाढ़तम अवस्था 'अनाभोग मिथ्यात्व' है।
(ख) अविरतिके बारह भेद होते हैं । वे निम्न प्रकार हैं:
मनको अपने विषयमें स्वच्छन्दतापूर्वक प्रवृत्ति करने देना 'मन अविरति' है। इसी प्रकार त्वचा, जिह्वा श्रादि पाँच इन्द्रियों की अविरतिको भी समझ लेना चाहिये । पृथ्वीकायिक जीवोंकी हिंसा करना 'पृथ्वीकाय-अविरति' है। शेष पाँच कायोंकी अविरतिको इसी प्रकार समझ लेना चाहिये। ये बारह अविरतियाँ मुख्य हैं । मृषावाद-अविरति, अदत्तादानअविरति श्रादि सब अविरतियोंका समावेश इन बारहमें ही हो जाता है।