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खण्ड
* कर्म अधिकार *
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कर्तव्य समझता है-सदा बुरे विचार किया करता है; इत्यादि।
(३) मनुष्य-श्रायु-बन्धके कारण:
जो विनयशील है-सदा कपटसे दूर रहता है-जो विचार व भाव उच्च रखता है-सादा जीवन व्यतीत करता है जिसके रग-रगमें दयाका संचार है-जिसने ईर्ष्या और मानको त्याग दिया है-दान देनेमें जिसकी रुचि है जो अल्य कषायवाला है; इत्यादि।
(४) देव-आयुके बन्धके कारण:
जो अविरतसम्यगदृष्टि मनुष्य या तिर्यञ्च देशविरती अर्थात् श्रावकपना और सरागसंयमी साधुपना पालता हैबालतप अर्थात् आत्मस्वरूपको न जानकर अज्ञानपूर्वक तप श्रादि करता है-अकामनिर्जरा अर्थात् इच्छा न होते हुए जिसके कर्मकी निर्जरा होती है-भूख, प्यास, गर्मी आदिको सहन करता है; इत्यादि।
६-नामकर्म-बन्धके कारण(१) शुभनामकर्मके कारण:
जो सरल अर्थात् मायारहित है-मन, वचन और काय का व्यापार जिसका एक-सा है-गौरवरहित अर्थात् धन-सम्पत्ति, महत्त्व, शील, सुन्दरता, नीरोगी कायका अभिमानरहित होता