________________
१४४
* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
मोक्षके मार्गका खण्डन करे-मिथ्यात्वके मार्गका समर्थन करे-नास्तिक धर्मका समर्थन करे-धर्मादेके द्रव्यका गवन करे-साधु मुनियोंकी निन्दा करे; इत्यादि ।
(२) चारित्रमोहनीयः
जिसका हास्य आदि क्रिया करनेका स्वभाव पड़ गया हैजो व्यभिचारी है-जो ईर्ष्या करता है जो प्रारम्भ करता हैजिसके सदा बुरे परिणाम रहते हैं जो शिकार खेलता है-मांस खाता तथा शराब पीता है जिसका दिल सदा हिंसामें . रहता है; इत्यादि।
५-आयु-कर्म-बन्धके कारण:(१) नरक-आयु-बन्धके कारण:
जो षट् काय (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस जीवों )की महाहिंसा करता है-पञ्चेन्द्रिय प्राणियोंका बध करता है-मांस खाता है-बराबर मैथुन सेवता हैविश्वासघात करता है-दूसरोंके धनको मारता है-जो रौद्रपरिणामी है; इत्यादि।
(२) तिर्यञ्च-आयु-बन्धके कारण:
जो दूसरोंके साथ कपटका व्यवहार करता है जो मुंहसे मीठी-मीठी बात करता है,पर दिलमें विष रखता है-झूठ जिसको जन्मसे ही प्यारा है-किसीको धोखा देना अथवा ठगना अपना