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________________ खण्ड] * कर्म अधिकार * १३३ - randurancornsex मनुष्यगति नाम, तिर्यश्चगति नाम, नरकगति नाम और देवगति नाम। २-जिस कर्मके उदयसे जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि कहा जाता है, उसे 'जातिनाम कर्म' कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं:एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जाति नाम कर्म। ____३-जिस कर्मके उदयसे जीवको औदारिक, वैक्रिय आदि शरीरकी प्राप्ति होती है, उसे 'तननाम कर्म' कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं:-औदारिकशरीर नाम, वैक्रियशरीर नाम, आहारिक शरीर नाम, तैजसशरीर नाम और कार्मणशरीर नाम । ____४-जिस कर्मके उदयसे जीवके अङ्ग (सिर, पैर आदि) और उपाङ्ग (अँगुली, कपाल आदि) के आकारमें पुद्गलोंका परिणमन होता है, उसे 'अङ्गोपाङ्गनाम कर्म' कहते हैं । इस कर्मके लीन भेद हैं:-औदारिक अङ्गोपाङ्ग, वैक्रिय अङ्गोपाङ्ग, और आहारिक अङ्गोपाङ्ग नामकर्म । ____५-जिस कर्मके उदयसे प्रथम ग्रहण किये हुये औदारिक आदि शरीर पुद्गलोंके साथ गृह्यमाण औदारिक आदि पुद्गलोंका अापसमें सम्बन्ध हो, उसे 'बन्धन नामकर्म' कहते हैं। इसके १५ भेद होते हैं:-औदारिक-औदारिक बन्धन, औदारिक-तैजस बन्धन, औदारिक-कार्मण बन्धन, औदारिक-तैजस-कार्मण बन्धन, वैक्रिय-वैक्रिय बन्धन, वैक्रिय-तैजस बन्धन, वैक्रिय-कार्मण
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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