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* जेल में मेरा जैनाभ्यास #
[द्वितीय
१ – बाह्य निमित्तों से जो आयु कम हो जाती हैं, उस आयुको 'अपवर्त्तनीय' अथवा 'अपवर्त्य' आय कहते हैं । जैसे जलमें · डूबकर मरना, आग में जलकर मरना, ज़हर खाकर मरना या शस्त्रकी चोटसे मरना आदि ।
२ - जो आयु किसी भी कारण से कम न हो सके अर्थात् जितने काल तककी पहिले बँध गई है उतने काल तक भोगी जावे, उस आयुको 'अनपवर्त्य आयु' कहते हैं ।
च - नामकर्म:
नामकर्म चित्रकार के समान है। जैसे चित्रकार नाना भाँतिके मनुष्य, हाथी, घोड़े आदिको चित्रित करता है, ऐसे ही नामकर्म नाना भाँति के देव, मनुष्य, नारकोंकी रचना करता है ।
नामकर्मकी संख्या कई अपेक्षासे है - किसीसे ४२, किसीसे ६३, किसीसे १०३ और किसीसे ६३ भेद होते हैं ।
नामकर्मको पिण्डप्रकृतियोंके मुख्य चौदह भेद हैं । वे निम्न प्रकार हैं:
१ - गतिनाम, २ - जातिनाम, ३- तनुनाम, ४ - अङ्गोपाङ्गनाम, ५- बन्धनाम, ६- सङ्घातनाम, ७ - संहनननाम, ८-संस्थाननाम, ६ - वर्णनाम, १० - गन्धनाम, ११ - रसनाम, १२ - स्पर्शनाम, १३- आनुपूर्वीनाम और १४ - विहायोगति नाम ।
१ - जिस कर्म के उदय से जीव नरक, देव आदि अवस्थाओं को प्राप्त करता है, उसे 'गतिनाम कर्म' कहते हैं। इसके चार भेद हैं