________________
१३४
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
बन्धन, वैक्रिय-तैजस-कार्मण बन्धन, आहारिक-श्राहारिक बन्धन, आहारिक-तैजस-बन्धन, आहारिक-कार्मण बन्धन, श्राहारिक-तैजस-कार्मण बन्धन, तैजस-तैजस बन्धन, तैजसकार्मण बन्धन, और कार्मण कार्मण बन्धन नामकर्म ।
६-जिस कर्मके उदयसे शरीर योग्य पुद्गल प्रथम ग्रहण किये हुये शरीर पुद्गलोंपर व्यवस्थित रूपसे स्थापित किये जाते हैं। उसे 'सङ्घातनाम कर्म' कहते हैं, इसके पाँच भेद होते हैं:
औदारिक संघातनाम, वैक्रिय संघातनाम, आहारिक संघातनाम, तैजस संघातनाम और कार्मण संघातनाम कर्म ।
७-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें हाड़ों की सन्धियाँ-जोड़ जुड़े होते हैं (जैसे लोहेकी पट्टियोंसे किवाड़ मजबूत किये जाते हैं) उसे 'संहनननाम कर्म' कहते हैं। इसके छह भेद होते हैं:-वनऋषभनाराच संहनन, ऋषभनाराच संहनन, नाराच संहनन, अर्धनाराच संहनन, कीलक संहनन और सेवा संहनन
नाम कर्म।
____-जिस कर्मके उदयसे शरीरके जुदे-जुदे शुभ या अशुभ
आकार होते है, उसे 'स्थाननाम कर्म' कहते हैं । इसके ६ भेद होते हैं:-समचतुरस्त्र संस्थान, न्यग्रोध संस्थान, सादि संस्थान, वामन. संस्थान, कुन्ज संस्थान और हुण्ड संस्थान नाम कर्म ।
है-जिस कर्मके उदयसे शरीरमें कृष्ण, गौर आदि रङ्ग होते हैं, उसे 'वर्णनाम कर्म' कहते हैं। इसके पाँच भेद होते हैं: