________________
१२८
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
..........
... Movie
२-जिस कर्मके उदयसे आत्माको अनुकूल विषयोंकी अप्राप्तिसे अथवा प्रतिकूल विषयोंकी प्राप्तिसे दुःखका अनुभव होता है, उसे 'असातावेदनीय कर्म' कहते हैं ।
आत्माको जो अपने स्वरूपके सुखका अनुभव होता है, वह किसी भी कर्मके उदयसे नहीं होता है।
घ-मोहनीय कर्म :
चौथा कम मोहनीय है। इसका स्वभाव मद्यके समान है। जिस प्रकार मद्यके नशेमें मनुष्यको अपने हित-अहितकी पहिचान नहीं रहती, उसी प्रकार मोहनीय कर्मके उदयसे अात्माको अपने हित-अहितके पहिचाननेकी बुद्धि नहीं रहती। ___ मोहनीय कर्मके दो भेद हैं:-(१) दर्शनमोहनीय और (२) चारित्रमोहनीय । १-जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही समझना, यह दर्शन है
अर्थात् तत्त्वार्थकी श्रद्धाको 'दर्शन' कहते हैं। यह आत्माका गुण है । इसके घात करनेवाले कर्मको 'दर्शनमोहनीय कर्म' कहते हैं। दर्शनमोहनीय के तीन भेद है:
(१) सम्यक्त्वमोहनीय, (२) मिश्रमोहनीय और (३) मिथ्यात्वमोहनीय ।
१-जिस कर्मके उदयसे जीवको जीव आदि नव तत्त्वोंपर श्रद्धा होती है, उसे 'सम्यमोहनीय' कहते हैं।
पा९माया