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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
द्वितीय
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___ क-ज्ञानावरणीय-ज्ञान+आवरण = जो कर्म ज्ञान गुण पर पर्दा गेरे अर्थात् आत्माके ज्ञानगुणोंको आच्छादित करेढके, उसे 'ज्ञानावरणीय कर्म' कहते हैं। ___ ख-दर्शनावरणीय-दर्शन + आवरण = जो कर्म देखनेपर पर्दा गेरे अर्थात् जो कर्म दर्शन गुणको आच्छादित करे-ढके, उसे 'दर्शनावरणीय कर्म' कहते हैं ।
ग-वेदनीय-जो कर्म आत्माको सुख-दुःख पहुँचावे, वह 'वेदनीय कर्म' कहा जाता है। ___घ-मोहनीय-जो कर्म स्व-पर-विवेकमें तथा स्वरूप-रमण में बाधा पहुँचाता है, वह 'मोहनीय कर्म' कहा जाता है ।
हु-आयु-जिस कर्मके अस्तित्वमें ( रहनेसे ) प्राणी जीता है तथा खतम होनेसे मरता है, उसे 'श्रायुः कर्म' कहते हैं।
च-नाम-जिस कमके उदयसे जीव नरक, तिर्यञ्च आदि नामोंसे सम्बोधित होता है, जैसे-अमुक मनुष्य है, अमुक देवता है, उसे 'नाम कर्म' कहते हैं।
छ-गोत्र-जो कर्म आत्माको उच्च तथा नीच कुलमें जन्मावे, उसे 'गोत्र कर्म' कहते हैं।
ज-अन्तराय-जो कर्म श्रात्माके वीर्य, दान, लाभ, भोग और उपभोग रूप शक्तियोंका घात करता है, उसे 'अन्तराय कर्म' कहते हैं।