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________________ * कर्म अधिकार * १२३ उक्त आठ कर्मोंकी उत्तर- प्रकृतियों का वर्णन किया जाता है: ] ज्ञानावरणीयकी ५ दर्शनावरणीयकी ६, वेदनीय की २, मोहनीयकी २८, आयुकी ४, नामकी १०३, गोत्रकी २ और अन्तरायकी ५—इस प्रकार कुल उत्तर - प्रकृतियाँ १५८ होती हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है: क - ज्ञानावरणीयः ज्ञानावरणीय की उत्तर - प्रकृतियों को समझने के लिये ज्ञान के भेद समझने से उनके आवरण सरलतासे समझ में आजायँगे । ज्ञानके मुख्य भेद पाँच हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान । इन पाँचोंके अवान्तर भेद अर्थात् र-भेद हैं: उत्तर -- मतिज्ञान के २८, श्रुतज्ञानके १४ अथवा २०, अवधिज्ञान के ६, मनःपर्यायज्ञानके २ और केवलज्ञान सिर्फ १ प्रकारका है। इन सबके भेदोंको मिलानेसे पाँच ज्ञानके ५१ भेद होते हैं और ५७ भेद भी होते हैं । मतिज्ञान - इन्द्रिय और मनके द्वारा जो ज्ञान होता है, उसे 'मतिज्ञान' कहते हैं । श्रुतज्ञान - शास्त्रोंके बाँचने तथा सुननेसे जो अर्थज्ञान होता है, उसे 'श्रुतज्ञान' कहते हैं । ६
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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