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प्रमाण हरि पदार्थक सर्वदेशको कहे और जनावे, उसे 'प्रमाण'
। कहते हैं।
जो पदार्थके एक देशको कहे और जनावे, उसे 'नय' कहते हैं।
आत्मा जिस ज्ञान के द्वारा बिना अन्य पदार्थकी सहायताके पदार्थको अत्यन्त निर्मल स्पष्टतया जाने, उसको 'प्रत्यक्ष
प्रमाण' कहते हैं। - जो पर्यायको उदासीन रूपसे देखता हुआ द्रव्यको ही मुख्य
तयासे कहै, उसे 'द्रव्यार्थिकनय' कहते हैं। • जो द्रव्यको मुख्य न करके एक पर्यायको ही कहै, उसे 'पर्यायार्थिकनय' कहते हैं।
शास्त्रकारोंने वस्तुका वस्तुत्व सिद्ध करनेकेलिये चार प्रमाण कहे हैं । वे इस भाँति हैं :
१-प्रत्यक्ष, २-अनुमान, ३-आगम और ४-उपमाप्रमाण।
१-आत्मा बिना अन्य पदार्थकी सहायताके ही पदार्थोंको अत्यन्त निर्मल स्पष्टतया जाने, उसे 'प्रत्यक्ष प्रमाण' कहते हैं। शास्त्रकारोंने प्रत्यक्ष प्रमाणके अनेक भेदानुभेद किये हैं। जैसे