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* नय अधिकार *
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शब्द यदि भिन्न अर्थवाले न हों तो घट, पट, अम्ब आदि शब्द भी भिन्न अर्थवाले न होने चाहिये । इसलिये शब्दके भेदसे अर्थका भेद है। ___ एवंभूत-इस नयकी दृष्टिसे शब्द, अपने अर्थका वाचक ( कहनेवाला) उस समय होता है जिस समय वह अर्थपदार्थ उस शब्दकी व्युत्पत्तिमेंसे क्रियाका जो भाव निकलता है, उस क्रियामें प्रवृत्त हुआ हो। जैसे-"गो” शब्दकी व्युत्पत्ति है"गच्छतीति गौः” अर्थात् जो गमन करता है उसे गौ कहते हैं, मगर वह 'गो' शब्द इस नयके अभिप्रायसे प्रत्येक गऊका वाचक नहीं हो सकता है किन्तु केवल गमन क्रियामें प्रवृत्त चलती हुई गायका ही वाचक हो सकता है। इस नयका कथन है कि शब्दकी व्युत्पत्तिके अनुसार ही यदि उसका अर्थ होता है तो उस अर्थको वह शब्द कह सकता है। ___यह बात ऊपर स्पष्ट की जा चुकी है कि यह सातों नय एक प्रकारके दृष्टि-विन्दु हैं। अपनी-अपनी मर्यादामें स्थित रहकर अन्य दृष्टि-विन्दुओंका खण्डन न करनेहीमें नयोंकी साधुता है। मध्यस्थ पुरुष सब नयोंको भिन्न-भिन्न दृष्टिसे मान देकर तत्त्वक्षेत्रकी विशाल सीमाका अवलोकन करते हैं। इसलिये वे राग-द्वेषकी बाधा न होनेसे, आत्माकी निर्मल दशाको प्राप्त कर सकते हैं।
सात नयोंके घटानेके वास्ते एक दृष्टान्त दिया जाता है:---