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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय __ कोई बढ़ई पायली (अनाज तोलनेका फर्मा) बनानेके ख्यालसे जंगलसे काष्ठ लेने जा रहा था। किसीने प्रश्न किया कि तुम कहाँ जाते हो ? तो बढ़ईने उत्तर दिया कि पायली बनानेको काष्ठ लेने जंगल जारहा हूँ। लकड़ी काटते समय, लकड़ी घर लाते समय, लकड़ोसे पायली बनाते समय, इत्यादि जिस समय उससे पूछा तो उसने उत्तर दिया कि पायली बनाता हूँ, यह नैगमनय है । इसपर व्यवहारनयवाला तो चुप रहा पर संग्रहनयवाला बोला कि जब इस पायलीसे नाजका संग्रह करो तब इसे पायली कहना । इसपर व्यवहारनयवाला बोला कि अभी तो तुम पायलो बना रहे हो, जब पायली बन जाय और व्यवहार-योग्य होजाय, तब उसे पायली कहना । इसपर ऋजुमूत्रनयवाला बोला कि पायली बन जानेसे पायली नहीं कही जाती, परन्तु नाजका नाप करोगे तब पायली कही जायगी। तब शब्दनयवाला बोला कि नाजका नाप करते समय एक दो ऐसे गिनी जब पायली कहना । तब समभिरूढनय वालाबोला कि किसी कायसे माप होगा, जब यह पायली कही जायगी। तब एवम्भूतनयवाला बोला कि नापते समय जब नापमें उपयोग होगा, तभी पायलो कही जायगी। इन सात नयों में नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय और ऋजुसूत्रनय, ये चार नय व्यवहारमें हैं और शब्दनय, समभिरुढ़ नय और एवम्भूतनय, ये तीन नय निश्चयमें हैं। किसी-किसी समय ऋजुसूत्रनयको भी निश्चयनयमें शामिल कर लेते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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