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खण्ड
* नय अधिकार *
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स्थितिमें जिस दृष्टिसे आत्मा और शरीर भिन्न हैं वह, और जिस दृष्टिसे आत्मा और शरीर अभिन्न हैं वह, दोनों दृष्टियाँ 'नय' कहलाती हैं। ___ जो अभिप्राय ज्ञानसे मोक्ष होना बतलाता है, वह ज्ञाननय है
और जो अभिप्राय क्रियासे मोक्ष सिद्ध बतलाता है, वह क्रियानय है, ये दोनों ही अभिप्राय नय हैं। ___ जो दृष्टि, वस्तुकी तात्त्विक स्थितिको अर्थात् वस्तुके मूल स्वरूपको स्पर्श करनेवाली है, वह निश्चयनय है और जो दृष्टि वस्तुकी बाह्य अवस्थाकी ओर लक्ष्य खींचती है, वह व्यवहारनय है।
निश्चयनय बताता है कि आत्मा (संसारी जीव) शुद्धबुद्ध-निरञ्जन-सच्चिदानन्दमय है और व्यवहारनय बताता है कि आत्मा, कर्मवद्ध अवस्थामें मोहवान-अविद्यावान् है । इस प्रकारके निश्चय और व्यवहारके अनेक उदाहरण हैं।
अभिप्राय बनाने वाले शब्द, वाक्य, शास्त्र या सिद्धान्त सब नय कहलाते हैं । उक्त नय अपनी मर्यादामें माननीय हैं । परन्तु यदि वे एक दूसरेको असत्य ठहरानेकेलिये तत्पर होते हैं तो अमान्य हो जाते हैं। जैसे ज्ञानसे मुक्ति बतानेवाला सिद्धान्त
और क्रियासे मुक्ति बतानेवाला सिद्धान्त, ये दोनों सिद्धान्त स्वपक्षका मण्डन करते हुए यदि वे एक दूसरेका खण्डन करने लगें तो तिरस्कारके पात्र हैं।