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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
यह समझ रखना चाहिये कि नय आंशिक सत्य है, आंशिक सत्य सम्पूर्ण सत्य नहीं माना जा सकता है। आत्माको नित्य या अनित्य मानना साशमें सत्य नहीं हो सकता है । जो सत्य जितने अंशोंमें हो, उसको उतने ही अंशोंमें मानना युक्त है।
इसकी गिनती नहीं हो सकती है कि वस्तुतः नय कितने हैं। अभिप्राय या वचन-प्रयोग जब गणनासे बाहर हैं, तब नय जो उनसे जुदा नहीं हैं, कैसे गणनाके अन्दर हो सकते हैं-नयों की भी गिनती नहीं हो सकती है। ऐसा होनेपर भी नयोंक मुख्यतया दो भेद बताये गये हैं-द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । मूल पदार्थको द्रव्य कहते हैं, जैसे घड़ेकी मिट्टी । मूल द्रव्यके परिणामको पर्याय कहते हैं । मिट्टी अथवा अन्य किसी द्रव्यमें जो परिवर्तन होता है, वे सब पर्याय हैं। द्रव्यार्थिकका मतलब है-मूल पदार्थोंपर लक्ष्य देनेवाला अभिप्राय और पर्यायार्थिक नय का मतलब है-पर्यायोंपर लक्ष रखनेवाला अभिप्राय । द्रव्यार्थिक नय सब पदार्थों को नित्य मानता है। जैसे-घड़ा, मूल द्रव्य मृत्तिका रूपसे नित्य है । पर्यायार्थिक नय सब पदार्थों को अनित्य मानता है। जैसे-स्वर्णकी माला, जंजीर, कड़े, अंगूठी आदि पदार्थों में परिवर्तन होता रहता है । इस अनित्यत्वको परिवर्तनजितना ही समझना चाहिये, क्योंकि सर्वथा नाश या सर्वथा अपूर्व उत्पाद किसी वस्तुका कभी नहीं होता है।
प्रकारान्तरसे नयके सात भेद बताये गये हैं: